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कहिया ऐतै दिन बस्ती केॅ / धनन्जय मिश्र

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कहिया ऐतै दिन बस्ती केॅ
खेल कूद के सब मस्ती केॅ।

सभ्भे सुख सेॅ जीयोॅ नै कि
मौज हुऐ बस कुछ हस्ती केॅ।

चोरी डाका बुरी बात छै
पकड़ैभोॅ इक दिन ऊ गलती केॅ।

बीस टका में बालू सेर भर
गेलै दिन सब ऊ सस्ती केॅ।

सब यात्री में मार चढ़ै लेॅ
छेद नै देखै कोय किस्ती केॅ।

कहे ‘धनंजय’ सोचोॅ इक दिन
जैतोॅ लाली ऊ मस्ती केॅ।