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अंग-महिमा / कैलाश झा ‘किंकर’

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1.

गंगा पद प्रक्षालिनी, गिरि मंदार ललाट।
महासती विहुला यहाँ, अजगैवी के ठाठ॥
अजगैवी के ठाठ, यहाँ छै विक्रमशीला।
नामी ऋषि कहोल, कर्ण केॅ जीवन लीला॥
मैदानी छै भग, पहाड़ो छै बहुरंगा।
बैजू के छै धाम अंग में पावन गंगा॥

2.

सीताकुंड नहाय कॅे, पूजऽ चंडी थान।
देखऽ महिमा अंग के, पुरथौं हर अरमान॥
पुरथौं हर अरमान, कहै कुषीतक कात्यायन।
कोशी, गंडक, गंग, नदी तट पर नारायण॥
धर्म-कर्म के भूमि लगै छै परम पुनीता।
निर्भय औ निःशंक सगर विचरै छै सीता॥

3.

चम्पा नगरी अंग के रहै विश्व-विख्यात।
व्यापारिक यै केन्द्र पर, अद्भुत यातायात॥
अद्भुत यातायात मगन नाचै व्यापारी।
नाथनगर में आदिकाल सें महल अटारी॥
लछमीजी के रहै जहाँ अद्भुत अनुकम्पा।
गंगाजी सें जुड़लऽ नदी अभियो छै चम्पा॥

4.

भाषा हमरऽ अंगिका, हमरऽ जीवन प्राण।
हिन्दी भाषा के करौं, युग-युग सें सम्मान॥
युग-युग सें सम्मान, सुयश हिन्दी पावै छै।
घर आँगन के नारि अंग-मंगल गाबै छै॥
हिन्दी के उत्थान होतै, ई राष्ट्रीय भाषा।
मतर अंगिका छिकै, अंग के मातृभाषा॥

5.

चाहै सब्भैं फेरू सें, अंग राज्य सुखधाम।
होतै तब रुकलऽ सगर, हर विकास के काम॥
हर विकाश के काम, सगर खुशियाली एैतै।
लगतै जब उद्योग, काम मजदूरो पैतै॥
जनपद के उत्थान लेल अब सभ्भैं साहै।
अंग राज्य निर्माण, सदा ‘किंकर’ भी चाहै॥