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शक्ति-शक्ति के जलै मशाल / कैलाश झा ‘किंकर’

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एक तरफ नारी के पूजा, दोसरऽ दिस छै अत्याचार।
हिन्नेॅ माय कतनों पूजौं, हुन्नेॅ नारी के चित्कार॥

रोज रंगल अखबार रहै छै, नारी के उत्पीड़न सँ
हर सीता छै परेशान आय, डेग-डेग पर रावण सँ
लहु-लुहान अबलासभ सँ, अखबारो छै लाले-लाल।
हिन्नेॅ माय कतनो पूजौं, हुन्नेॅ नारी के चित्कार॥

अबलासभ सँ छेड़-छाड़ करि, कलि-कुसुम के रौंदै छै
क्षनिक मात्र के विषय-वासना, गिद्ध-दृष्टि सन कौंधै छै
पौरुष छै शक्ति पर हाबी, जीत हार के बनल सबाल।
हिन्नेॅ माय कतनो पूजौं, हुन्नेॅ नारी के चित्कार॥

जौं दहेज के आगिन धधकै, धू-धू दुल्हिन जरै छै
राम-राम नै रावण-रावण, कहि केॅ दुल्हिन मरै छै
अबलासभ के अबलापन आय, बनी गेलै जी के जंजाल।
हिन्नेॅ माय कतनो पूजौं, हुन्नेॅ नारी के चित्कार॥

दुर्गा, काली, सरस्वती हे, ब्रह्माणी, रुद्राणी माय
बचाबऽ-बचाबऽ नारीसभ कें, लाज हाथ छौ तोरे आय
तोरऽ कृपा होतै तेॅ मैया, नारी फेरू होतै निहाल।
हिन्नेॅ माय कतनो पूजौं, हुन्नेॅ नारी के चित्कार॥

औरत पर जें हाथ उठावै, तोड़ि दहऽ तों ओकरऽ हाथ
दुलहिन के जराबैवाला के, दहो जरायै साथे-साथ
खोयलऽ प्रतिष्ठा दिलबावऽ, शक्ति-शक्ति के जलेॅ मशाल।
हिन्नेॅ माय कतनो पूजौं, हुन्नेॅ नारी के चित्कार॥