भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आशा / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:43, 24 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिरुद्ध प्रसाद विमल |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
देखॅ प्रीतम
गरजी-गरजी केॅ बरसै वाला
ई भादॅ के मेघ।
जानी केॅ भी अनजान नै बनॅ हमरॅ गीत
ई हमरे आँखी के लोर छेकै
जे बही रहलॅ छै यै आसॅ में
कि तोंय ऐभौ
आरो हमरा कानतेॅ देखी केॅ
भीर लेभौ आपनॅ कोमल बाहीं में
आरो पोछी देभौ हमरॅ लोर
फेरू ”पगली“ कही केॅ हाँसभौ
मतुर हमरा हाँसत नै देखी केॅ
गुदगुदाय देभौ हमरा
आरो हमरा अंग-अंग पर तोरॅ अंगुली के रेंगथैं
खिलखिलाय केॅ हाँस’ लागबै हम्में
सब टा दुक्खॅ केॅ भूली केॅ
बोलेॅ-हाँसेॅ लागबै खुली केॅ
दाँतॅ सें बिजली छिटकाय केॅ
तोरा थोड़ॅ दूर ठेली केॅ।