भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कैन्हें गरजै ई मेघ छै / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:48, 24 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिरुद्ध प्रसाद विमल |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गरजै छै ई अखारॅ के मेघ पिया
तोरा नै पैलां तेॅ की पैलां?

जौं हम्में ई जानतियै कि तोरा सें बिछोह होतै
तेॅ सच कहै छियौं पिया जनमे नै लेतियै।
आय तोहें नै
तेॅ ई वर्षा नै सुहाबै छै
तड़पै छै जी, बिलखै छै मॅन, धड़कै छै छाती
लागै छै देहॅ में कोय अगिनवाण मारलेॅ रहेॅ
वर्षा के पानी सें तेॅ होय गेलॅ छै देहॅ में ढलढल फोका
ऐन्हां में अंग-अंग टहकै छै पिया

पिया!
पनसोखा देखॅ
हमरे आँखी के ई आश-हुलास छेक।

पिया, सौनो ऐलै
सखी सीनी मेंहदी रचाबै छै
हरा-हरा काँच के चूड़ी पिन्हीं केॅ हुलसै छै
मतुर हमरॅ अंग-अंग झुलसेॅ छै
बस मोखा लागी
बैठली छी चुपचाप
मनझमान उदास होयकेॅ
कथी लेॅ, केकरा लेॅ करबै सिंगार?

रात भर पानी पड़लै
आरो हम्मेॅ जागी केॅ भी सुतली रहलियै
सुती केॅ भी जागली रहलियै
सजलॅ पलंगॅ पर बिछलॅ बिछौना काटतेॅ रहलै रात भर
प्रीतम, हमरा अचरज होय छै
कि हम्में केनां केॅ बचलॅ छियै
कैन्हेॅ नी छुटलॅ छै हमरॅ प्राण?

केकरा लेॅ?
कोन निर्माेही लेॅ?