राग-बहार। ताल दु्रत तीन ताल
छूम छन नन नन पायल बाजै,
उमगि आरती गावै॥धु्रव॥
रतिमदमोचनि सुभग सुहागिनी,
सुन्दर दुलह रिझावै।
सत-सत मदनमथन छवि माधुरि,
निरखत नैन जुड़ावै॥1॥
मुकुट लटक मनिमौर-छहर पर,
रवि-ससि-किरण लजावै।
नवल-जलद छवि-रुचिर दुलह-तन,
सिय-दामिनि लिपटाबै॥2॥
बरु जनु नील सरोजनाल सँग,
चम्पलता अरुझावै।
चंद्र चकोर-अमित छबि जोरी,
अलिगन-हिय उमगावै॥3॥
बीन-मुरलि-सुर मधुर मिलित अति,
ताल मृदंग सुहावै।
कंचन-थार सँवारि आरती,
कलुष ‘करील’ जरावै॥4॥