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शरद कातिक नहाय / ऋतुरंग / अमरेन्द्र
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शरद कातिक नहाय।
ऐलोॅ लेतरिया छै लै लेॅ बिदाय
शरद कातिक नहाय।
नोॅ दिन नवराती में छेली कुमारी
कत्तेॅ के नजरी सें बचली बेचारी
जानै नै छेलै कि जैवोॅ विहाय
शरद कातिक नहाय।
कातिकोॅ में ऐलै कठमंगिया, पटोरी
वीहे रङ जरलै सौ दीया दुआरी
लै जैतै डोली पर दुल्हा कसाय
शरद कातिक नहाय।
नद्दी में ठाड़ी होय अँचरा सम्हारी
माँगै छै छठ माय सें खोचा पसारी
सूरज देव करुणा सें गेलै नरमाय
शरद कातिक नहाय।
-30.10.95