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पिया पूनो की रात / ऋतुरंग / अमरेन्द्र

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पिया पूनो की रात।
गालोॅ पर चुम्मा के पैहिलोॅ सौगात
पिया पूनो की रात।

की रङ के टह-टह छै ठहाका इंजोरिया
रही-रही धोखा खँव, होलै भोररिया
ठाड़ी भै देखौं तेॅ चाँद करै-‘झात’
पिया पूनो की रात।

मेघोॅ के डोली में चानोॅ के दुल्हा
रौशनी चमकैनें, नै तुरही नै तुरहा
लागलोॅ छै द्वारी पर झकझक बारात
पिया पूनो की रात।

पारा रङ झलमल तन धरती के झलकै
है रङ परकाश कहाँ मलको जे मलके
केना केॅ मिलियौं-है बड़का कभात
पिया पूनो की रात।