भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

श्रीसुता शरत / ऋतु रूप / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:11, 30 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रप्रकाश जगप्रिय |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ई शरत केॅ की होलोॅ छै
हँसली-ठठेली ऊ जन्नें सेॅ गुजरै छै
अड़हुल केॅ होने हँसावै छै
होनै शेफालिकौ केॅ
कासौ केॅ होने
चम्पौ केॅ होने
तेॅ मालती केॅ आरो भी बढ़िये केॅ।

ई शरत केॅ की होलोॅ छै!
जन्नें-जन्नें जाय छै शरत
हुन्नै-हुन्नै मौलसरी के गंध भागै
धरती के भाग्य जागै।

जीवन में पहले ही दाफी
ई देखलेॅ छै सब्भैं
थामी केॅ शरत केरोॅ अँचरा
छतिवन गमकलोॅ छै हेनोॅ
जेना लागी गेलोॅ रहेॅ
सुगन्धोॅ के हाट
शरत सुकुमारी के हेने छै ठाठ।
तहियो मन पूछै छै
ई शरत केॅ की होलोॅ छै?