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नया डोॅर / ऋतु रूप / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

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मटर, मूंग
अरहर के खेत मेॅ बैठलोॅ हेमन्त
आँख गड़लेॅ छै बाघिन पर
जे आपनोॅ शावक केॅ
पेटोॅ-छाती सेॅ सटैलेॅ
सूंघी रहलोॅ छै
चार-चार शावक के देह,
हेमन्त के देह
रही-रही केॅ सिहरै छै।

ओतनै
जतना कि हेमन्त केॅ याद करी
सिहरै छै रमणी के देह
पता नै
हेमन्त के हेने जोर छै
तेॅ की करतै शिशिर।
केसर कहै-
हम्मेॅ छियै नी।