भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
संकेत / ऋतु रूप / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:18, 30 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रप्रकाश जगप्रिय |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
ई फागुन आवै के ही आहट छेकै
कि गाछ-बिरिछ के पत्ता
हरहरावेॅ लागलोॅ छै,
हवा रोॅ तेज झोंका चलतै
कि उड़ेॅ लागतै रसहीन पत्ता
ऊपर आरो फेनू
बिछी जैतै दूर-दूर तांय
धरती पर
आखिर ई संकेते तेॅ छेकै
कि फागुन आवी चललै।
जे गाछी सेॅ छूटी गेलोॅ छै पत्र-पुष्प
वही गाछ-बिरिछ मेॅ
आबेॅ लागतै नया-नया पत्ता
नया-नया फूल।
शिशिर बुढ़ाय गेलै
तहीं सेॅ तेॅ
आबेॅ नै डरावै छै पछिया आकि उतराहा हवा।
सुरुज के चेहरा पर मुस्कान छै
शायत देखी लेलेॅ छै
दूर दक्खिन सेॅ ऐतेॅ हुवेॅ अवा केॅ
हिमप्रदेश सेॅ ऐलोॅ हवा
आबेॅ समेटी रहलोॅ छै
अपनोॅ बोरिया-बिस्तर
ई फागुन आवै के ही तेॅ आहट छेकै।