चलॅ-चलॅ अंग देश / रामनन्दन 'विकल'
चलॅ-चलॅ अंग देश,
बँऊसी मनार भैया।
चारो दिसें देवता,
निवास करै भइया।
अंगॅ केरॅ उत्तरॅ में,
राज नेपाल भैया।
दखिनें झूमै छै,
छोटानागपुर भइया।
पुरुबें बंगाल सोहै,
पछिमें मगध राज
गीत गावै सोनँ
उपजावै मोरे भइया।
बैद्यनाथ धाम भैया
अंगॅ में सुशोभित छै,
जल डारी पूजै आत्म-
लिंग मोरे भइया।
त्रिलिंगॅ के देश भैया,
वै़द्यनाथ नाग नाथ
शुंभनाथ सखेती
बिराजै मोरे भइया।
झारीखण्डें रावणेश,
नागेश दारुका बनें,
भभूती रमाबै जौने,
सुख पाबै भइया।
अंग देश देव-छेत्र
व्रात्य-असुर-छेत्र
बन वासी हुलसी
बिहार करै भइया।
गांव-नगर डोले,
सुमुखी-सयानी भैया
खेतीहर-मजुर
कि ड़ोर करै भइया।
चण्डी थान बिहुला-
विषहरी के थान भैया।
मनता पुराबै आठो
जाम मोरे भइया।
गंगा चीजें अजगबी,
कातें बूढ़ा नाथ भैया।
चिता भूमि कुप्पा घाट,
ठाम्हैं-ठाम भइया।
जाह्नवी के आरें-पारें
तीरथ बैरागनॅ के,
कत्ते नौ पवित्र धाम,
सोहै मोरे भइया।
शक्तिपीठ शैव पीठ,
ब्रह्मापीठ, विष्णुपीठ,
विद्या पीठ, देखी
सुख पावॅ मोरे भइया।
भोली बाबा, मेंही दास
सरल सुमन्त वहीं
यहाँ रिसि, मुनि, ब्रह्म-
ज्ञानी मोरे भइया।
बिक्रमशिला में गूँजै,
चौरासी सिद्धॅ के वाणी,
जैन-बौद्ध-ब्राह्मण,
संगम मोरे भइया।
चम्पापुरी राजधानी,
प्राचीन अंगॅ के भैया।
रोमपा-पृथुलाक्ष,
चम्प बसै भइया।
ऋषि शृंग शान्ता केरॅ
जोड़ी चम्पापुरी छोड़ी
अवधॅ में जाय,
पुत्र यज्ञ करी भइया।
राम भरत लाल
लछुमन-शत्रुघन,
भारतॅ केॅ देलकै
उधारी मोरे भइया।
द्वापरॅ में राजा कर्ण,
महादानी, महाबली,
गंगा-तीरे इन्द्रें भीख
मांगै मोरे भइया।
चम्पा के अकथ कथा,
बऊसी मनार चलॅ,
देवगुरु नगरी
प्रणाम करॅ भइया।
परम पवित्र यहाँ,
पाप हरणी ताल भइया।
चारो दिसें गाछ छॉह,
करै मोरे भइया।
चौदहो रतन-धाम,
समुद्र मथैलै भैया।
देवासुर भूमी के,
तिलक करॅ भइया।
मन्दार बसै छै यहाँ,
बासुकी विराजै भैया।
तपोभूमि मॉटी केरॅ
भाग देखॅ भइया।
मथानी बनी केॅ जोने,
मथी केॅ समुद्र भैया।
धरती केॅ देलकै,
रतन-खान भइया।
मथीकेॅ समुद्रहै केॅ नै,
मथीकेॅ संस्कृतियो केॅ
देवासुर-मिलन-
निमित्त होलै भइया।
आसुरी शक्ति के पुंज,
बड़ी गेलै मधु दैत्य
सहाय विष्णु के सबेॅ,
बनी गेलै भइया।
मधु दैत्य चाँपी विष्णु,
खढ़ु ऐलै एकर्है पेॅ
मधूसूदन बनी केॅ
पुजैलै मोरे भइया।
मनारॅ उपरें आय्यो,
चरणॅ के चिन्ह भैया।
चलॅ देखॅ नयन,
सुफल करॅ भइया।
त्रेता में राम ऐलै,
द्वापर कन्हैया भैया।
युगें-युगें ऋषि-मुनी,
ऐलै मोरे भइया।
कपिल-कनाद ऐलै,
पतंजलि, बामदेव
व्यासदेव, वशिष्ट,
नारद मोरे भइया।
सभै के गुफा छै वहाँ,
तपो भूमि मंदारॅ में।
देवी काम चारिणी के
सिद्ध पीठ भइया।
मधुसूदन धाम यहाँ,
घंटा-शंख गूँजै भैया।
चौंसठी जोगिनी नृत्य,
करै मोरे भइया।
मोक्षधाम अंग यहेॅ,
शक्ति-रूद्र-विष्णु भैया।
भक्तॅ के निवारै कष्ट,
कृपा करी भइया।
इह लोक-परलोक
दोनों केॅ सुधारॅ भैया।
हरि के चरण गहि,
तरॅ मोरे भइया।
मन्द्राचल उपर चढ़ै,
विष्णु पग-चिन्होॅ पड़ै
हौ नर बनै नारायण
महिमा सुनॅ भइया।
हिमवानॅ के अग्रज,
तेईस तेंतिस गज,
देवता तेंतीस कोटि,
बास करै भइया।
बीचे टा मनरवा पेॅ,
नरसिंह-गुफा भैया।
दिन-रात जोत लह-
रावै मोरे भइया।
महाकाल भैरव खड़ा,
थोड़े उपरें भैया।
गणपति-सरोसती,
बढ़ी देखॅ भइया।
राम कुण्ड, विष्णु कुण्ड,
लछुमन कुण्ड भैया।
छीर-धारा-दुधिया
-बहार देखॅ भइया।
सीता कुण्ड, शंख कुण्ड,
साधू के आश्रम भैया।
धुनी रमै वेद-पाठ,
गूँजै मोरे भइया।
गुफाँ शिव-हनुमान,
जेना मूर्त्तिमान भैया।
मूर्त्तिमान मधु यहाँ,
देखॅ मोरे भइया।
रामचन्द्रें गया कुण्डें,
पिण्ड दान करी भैया।
करनै छै पितर-
उद्धार मोरे भइया।
आकाश गंगा के कुण्ड,
क्षीर-सागर कुण्ड,
चक्रावर्त्त कुण्ड,
चक्रतीर्थ मोरे भइया।
विष्णु के विराट शंख,
‘पांचजन्य’ शंखॅ कुण्डें,
जिनगी सुफल करॅ
देखी मोरे भइया।
कामाख्या-सौभाग्य कुण्ड,
गुप्त गोदावरी कुण्ड,
धरणी देवी के,
बाराहॅ के कुण्ड भइया।
जोगी मठें बैठी तोंहें,
जिराबॅ तनी हो भैया।
बरसा-रौदौं के छाता,
बूझॅ मोरे भइया।
मंदार के चोटी सें तों
निहारॅ अंगॅ के भूम;
हरा-भरा खेत,
लहराबै मोरे भइया।
सुखदा चानन चीर,
गेरुआ डाका के नीर
सड़िया के पाड़ नाखीं
लागै मोरे भइया
जेना की सुन्दरी नार
करी केॅ सोलो सिंगार
टुक-टुक ताकै एक
टकें मोरे भइया।
बेसुध साड़ी के छोर,
दखिना हवा के जोर,
सॅसरी उतरें लह-
राबै मोरे भइया
लगवा-माली पहाड़
बतियाबै ठाढ़े-ठाढ़
मन्द्राचल गुनगान,
मानॅ मोरे भइया।
विष्णु-लक्ष्मी-सरोसती
षटपद चिन्ह देखॅ
थोड़ॅ दूर चढ़ी के
उपर मोरे भइया।
कोय कहै लक्ष्मी तीर्थ,
कोय बोलै जैन भैया।
कर जोड़ी पद गही,
लाभ पाबॅ भइया।
जैन सुनी वासु पूज्य,
बारमॅ तीर्थ कर भैया।
हनकॅ निर्वाण धाम,
यही ठीयाँ भइया।
विष्णु के अनन्त नाम,
सुमीरॅ जपॅ हो भैया।
मिलथौं स्वर्ग में ठौर,
सुनॅ मोरे भइया।
मन्दारॅ के चारो ओर,
माधव-मलूट बॅन,
भृष्टराज-कमला,
विराजै छेलै भइया।
जड़ी-बूटी-औषधी,
फूल-फलॅ के बगान,
स्वस्थ-सुन्दर-पव-
मान चलै भइया।
रेणुका बदरीं बने
अम्बिका देव के धाम,
महादुख, महाभय,
-परित्राण भइया।
शंकर-अम्बिका घूमै,
कामधेनु चरै झूमै
जीवें-जीवें निर्भय
बिहार करै भइया।
चलॅ देखॅ मसूदन,
मंदिर पुरातन भैया।
गंुबजॅ सें बंशी धुनि,
आबै मोरे भइया।
गंधर्व के नॉच-गान,
खोहॅ में आबै सुनसान,
मद्विम-मद्विम सुनॅ कान
रोपी मोरे भइया।
कहियो छेले मनार,
देशॅ के तीरथ राज,
आय बनी इतिहास,
खाढॅ़ मोरे भइया।
कत्तेॅ-कत्तेॅ काल-खण्ड
बनी केॅ जमॅ के दण्ड,
पसरी गेलॅ छै खण्ड-
खण्ड मोरे भइया।
लाख दीप जरै छेलै,
लखदीपा मंदिरॅ में;
आय खण्डहर बनी
गेलै मोरे भइया।
बौंसी गेला मसूदन,
छोड़ी केॅ पुरानॅ ठौर;
सँकराँत नाहै पाप-
हरणीं तय्यो भइया।
पत्ती साल सँकराँत
चौदह जनवरी भैया।
हाथी चढ़ी आवै चक्र-
धारी सुनॅ भइया।
नाही पाप हरणी ताल,
घूमी केॅ मनार कात;
हाथिये में लौटी जाय,
मन्दिर मोरे भइया।
पाप हरणी गंगा तूल,
निर्मल बनाबै जीव
हरी सभ्भे पाप-ताप,
सुनॅ मोरे भइया।
जपी केॅ मन्दार नाम,
कत्तेॅ पापी गेलॅ धाम
शिव-विष्णु जहाँ पेॅ
निवास करै भइया।
जप भूमि, तप भूमि,
परम पावन भूमि,
पुण्य भूमि कर्म-ज्ञान-
भक्ति भूमि भइया।
शक्ति पीठ, सिद्धि पीठ,
बिद्यापीठ भूमि भैया।
श्रद्धा-भक्ति बटोरी,
प्रणाम करॅ भइया।
आनन्द शंकर बसै
यै जुगॅ के व्यास भैया
माधवन नामॅ सें
बिख्यात मोरे भइया।
राष्ट्र भारती केरॅ
सपुत सलोना सुत
मन्दार-मुकुट, जड़ी
तरें सोहै भइया।
पंचकोसी जनमलै
महाजोगी भोली बाबा
बहाय गेलै भक्तिरस
देश भरी भइया।
अंगिका के बिद्यापति
अंगिका के सूर यहाँ
अंगिका के तुलसी
बिराजै मोरे भइया।
जत्तॅ खोजॅ तत्तेॅ पैसॅ
कवौ-गुनौ ज्ञानी-जोगी
द्विजेन्द्र-कैरव-द्विज
जनार्दन भइया।
जिनगी के मूर-सूद
मॉटी में बिराजै यहाँ
भवप्रीताँ रस बर-
साबै मोरे भइया।
सोझॅ-सोझॅ लोग यहाँ
छली नै प्रपंची एक
किसान-मजूर नेक
बसै मोरे भइया।
अतिथि के देव बूझै
विनय आदर शील
आभूषण स्वागत-
सत्कार मोरे भइया।
आर्य-व्रात्य संस्कृति के
मिलन पावन भूमि
अंगदेश-मुकुट
मनार मोरे भइया।
माँटी केॅ नमन करॅ
सुफल मनुख जन्म
कथा सुनॅ बालिसा
नगदी केरॅ भइया।