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सगुन पिया के / परमानंद ‘प्रेमी’

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सखि हे करी देहो सगुनमां बलमुवां आबै छै को न
जखनी सें सपना में पियबा क’ देखलों
रही-रही फड़कै नयनमां।
सुती उठी देखलों कौवा क’
गगलै छेलै ऐंगनमां॥

बलमुवां आबै छै की नै सखि हे करी देहो सगुनमां

बैरो फरलऽ नेमो फरलऽ
फरी गेलऽ अबे बेदाना।
पिया निर्मोहिया बिदेशऽ में पड़लऽ
कौनें छोड़ैतऽ ई दाना॥

बलमुवां आबै छै की नै सखि हे करी देहो सगुनमां

पिन्ही-ओढ़ी टोला में जों निकलै छी
मारै छ’ लोगबाँ नजरिया।
सुनों घरों में रहलो नैं जाय छ’
केना के चलौं डगरिया॥

बलमुवां आबै छै की नै सखि हे करी देहो सगुनमां

जो पियबा आय आबी जैथौं
सड़िया पिन्हैभौं छपौवा।
पहिलऽ मिठाय कौवा क’ देबै
‘प्रेमी’ के देबै ठिठुवा॥

बलमुवां आबै छै की नै सखि हे करी देहो सगुनमां