भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मनॉन / श्रीस्नेही

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:22, 7 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीस्नेही |अनुवादक= |संग्रह=गीत...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तोर्हा सुमरौं दिन-रात, उठी पूजौं परात,
मैया देॅदे दरस अबेॅगे!
फूल न अढोल मैया धूपऽ नै बाती!
अच्छत-सुपाड़ियो नै पानें पूजौती॥
किये चढ़ैबी तोर्हा गे! मैया...
बेटा अबोध हम्में दुनिया के हारलऽ!
घर्हौं सें दूर आरो बुद्धि के मारलऽ!!
किये सुनैबौ तोर्हा गे! मैया...
सुधियो नै मैया जे करमऽ के जानौं!
पोथी के पचड़ा सें अलधैं बखानौं!!
पैयाँ-पीरिती बस गे! मैया...
तोर्हा सुमरौं दिन-रात, उठी पूजौं परात,
मैया देॅ दे दरस अब गे!