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दुल्हैनी के चिट्ठी... / श्रीस्नेही

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सावनेॅ-सावनेॅ साल गुजरल्हौं कैल्हऽ पै तोहें आवै छऽ नै!
नूनू के बाबू, घरऽ के खिस्सा कैभौ तेॅ पतिऐभेॅ नै!!
भोरे बोढ़ा-सोढ़ा करै छी, भनसा-घऽर फेरू जाय छी!
बासिये मुँहें नबला बेरऽ पेॅ बूढ़ी केेॅ नहबाय छी!!
एत्तेॅ करला पेॅ तोर्हऽ घरऽ में नेॅदें भलऽ कहै छेॅ नै!
नूनू के बाबू, घरऽ के खिस्सा कैमौं तेॅ पतिऐभेॅ नै!!
नैतें-धोतें बेर आधऽ ऐंगना झटपट दू-चार कौर खायछी!
सूपऽ-समाठऽ केॅ हाथऽ में लेले, उखड़ी सें मऽन बहलाय छी!
तैयो बच्चा ठुनकै छेॅ हमरऽ गोदियो-काँखे लै छेॅ नै!
नूनू के बाबू, घरऽ के खिस्सा कैमौं तेॅ पतिऐभेॅ नै!!
टोला-परोसा सें आगिन मांगिकेॅ, बोरसी-करसी सजाय छी!
मैया केॅ सुमरी संझा बाती देकेॅ डिविया जराय छी!!
चढ़लऽ हड़िया, खाय के तगाजा, आँखियो-लोर कोय पोछै छेॅ नै!
नूनू के बाबू, घरऽ के खिस्सा कैभौं तेॅ पतिऐभेॅ नै!!