भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

झूमर / श्रीस्नेही

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:41, 7 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीस्नेही |अनुवादक= |संग्रह=गीत...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चलऽ हे दाय चलऽ चलऽ हे दाय
भोला के आपनऽ मनावैलेॅ।
भोला के आपनऽ मनावैलेॅ
शिवशंकर के आपनऽ रीझावैले॥
बेली-चमेली हुनका नै भावै।
अत्तर-गुलाब जल देखी गोस्साबै॥
बेलऽ के पत्ता धतूरा सोहाय।
चलऽ चलऽ हे दाय॥ भोला के ...
काया जराय सखि भसम सखि भसम लगैबै।
आँखी के लोरऽ सें हुनका नभैवै॥
करीके भगतिया लेबै रीझाय।
चलऽ चलऽ हे दाय॥ भोला के...