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खाली ई सौगन्धे खैतें / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

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खाली ई सौगन्धे खैतें
उमिर कटी नै जाय, मनैतें।

जीवन की? पानी रं बहता
क्रिया वही रं, जे रं कर्त्ता
ई तेॅ गुदड़ी सालो साल के
चलतै की पैबन्द लगैतें?

यहाँ पवन रं साँस बहै छै
यम के नीचें जीव रहै छै
वैमें सुख बस चुटकी भर ही
जेकरा देर लगै नै जैतें।

रूठा-रूठी की करना छै
जबकि है तय्ये, मरना छै
आवोॅ योग जगावोॅ दिल के
की दुख केनोॅ, सुख के हैतेॅ।