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फसकै छै जिनगी रोॅ फसराहा धोती / अमरेन्द्र

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फसकै छै जिनगी रोॅ फसराहा धोती
कोॅन लायक रहतै ई, कत्तो बिहौती!

जन्नंे बचावै छी, हुन्हैं सेँ मसकै
कन्नें रफुआबौं कि कोर-कोर फसकै
राखियो केॅ की होतै एकरा चपोती।

पाक बिना सूतोॅ रोॅ सूत-सूत टूटै
धापचोॅ रँ रंगलोॅ, सब हरदी रंग छूटै
कौनी करम रोॅ ई राखलौं सगनौती!

पिहनी केॅ लागै छी बहरूपिया भेषोॅ मेँ
सबकेॅ डराबै छी उमरी रोॅ शेषोॅ मेँ
माँगै छी भिक्खा मेँ आपनोॅ मनोती।

कोय हमरोॅ सुक्खोॅ केॅ मछली रँ फाँसै
लोरोॅ मेँ सपना रोॅ मरपा सब भाँसै
हमरोॅ सब हास-हूस गेलै हसोती केॅ
ओकरौ पर माँगै छै जिनगी फिरौती।

-कंचनलता, जनवरी-मार्च, 2000