चन्दन रोॅ गाछ एक
झूमै छै, लहरावै
की रँ रोॅ मस्ती में
सांपोॅ रोॅ बस्ती में।
एक डार सरँगोॅ दिश
जेन्है केॅ उट्ठै छै
सौ गो फन टूटै छै
जेना गुलमेठ रहेॅ
धँसलोॅ इक कस्ती में।
की रँ रोॅ खेल हुवै
डार हँसी लोटै छै
महुरो महुरावै छै
लागतै नै आग सुनोॅ
चन्दन-गृहस्थी में।