भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गुड़बा-गुड़िया / अमरेन्द्र

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:12, 11 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatAngi...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गुड़िया गेलै अपनोॅ घोॅर
गुड़बा केॅ लागलै छै जोॅर।
ऐलै वैद्य जड़ी लै साथ
माथा पर फेरै छै हाथ
नाड़ी देखै दाबी केॅ
रोग न कुछुओ पाबी केॅ
बैद्य बेचारा होलै दंग
बुद्धि नै दै हुनको संग
जड़ी तुरते बूकी लेलकै
मंतर वै पर फूँकी देलकै
जीहा पर जेन्है राखलकै
गुड़बो सबटा थूकी देलकै

गुड़िया सबटा बात सुनी केॅ
लेलकै माथोॅ वहीं धुनी केॅ।