भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शिक्षा / अमरेन्द्र

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:24, 11 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह=ढोल ब...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धाक धिनक धिन, धिन-धिन-धिन
चुप मत बैठें गिनती गिन

एक्काँ, दूक्काँ, तिनकाँ, चैक्काँ
पचकाँ, छक्काँ, फेरु सतकाँ
अठकाँ, नौक्काँ आरो दसकाँ
दसकाँ सें लै केॅ तोंय बिसकाँ
नै पढ़ला सेॅ लै जैतौं जिन
धाक धिनक धिन, धिन-धिन-धिन।

गिन ऊँगली पर सोमवार केॅ
मंगल आरो बुद्धवार केॅ
ऊँगली पर गिन गुरुवार केॅ
शुक्र-शनी केॅ, रविवार केॅ
एक्को ठो नै भुलैयैं दिन
धाक धिनक धिन, धिन-धिन-धिन।