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चौथे किरण / सवर्णा / तेजनारायण कुशवाहा

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पिया के गाँव से संज्ञा एक घाव लेन्हें
श्याम जिया के भाव के नव नाव खेन्हें
डुबकी लगैती उतरैती छने-छन
सूरुज सामी के गोड़ लागी मनेमन
आगू-पीछू सोचि अश्वा सरूप चलली
घूरि-घूरि हेरि नव वन निकलली

डोलै तनियो टा नै कहीं बतास
सगठें झुलसै डार-पात वन-घास
नाचै दुपहरिया में झिलमिल लू
वैं आगिन सँ देह जरै धू-धू।

ई गरमी जरियो नै सहली जाय
सुखलै पोखरियो नदियो गे माय।

कठिन पड़ै झर हर-हर ढरकै लोर
बदरी उमड़ै रात अन्हरिया घोर
बिजली तड़पै, तड़पै हमरो प्राण
लागै जेना अबे निकलतै जान।

शरद-इंजोरिया अल्हड़ नाखी आय
नित कनाय राते भिनसारे आय।
दाँत करै कट-कट-कट काँपै गात
सूनोॅ-सूनोॅ लागै सारी रात
रौदा उगौ उगौ रौदा हे साँय
तोर बहुरिया जाड़ें मरौ गोसाँय!

कोयल ऐलै जियरा काढ़ै कूकि
हिया जगावै हूक पिया के हूक!
बड़ा सबेरे निज भौंरा के पाय
डारी-डारी कुसुम-कली मुसुकाय
पूर्बे मुह सॅ सुरुजमुखी हर रोज
उर ढंकि रज सं सरल सलोन उरोज
पीरोॅ पंखुरी अंचरी के फैलाय
मस्ती में इतराय पिया के पाय!
रोज चिढ़ावै होतें लाल बिहान
मिली कुमुदिनी संग रातो के चान।

जों हमें जानतों सैयां होतै वियोगवा हो
नहिहें नैहरवा हमें जाइतों रे की।
जैसें तलफै पिया जल विन मछरिया हो
वैसें तलफै तिरिया तोरोॅ नु रे की।

जैसे हलफै पिया मृग बिन मिरिगिया हो
वैसे हलफै तिरिया तोरोॅ नु रे की।
जैसें बिलखै पिया बाघ बिन बघिनियां हो
वैसें बिलखै तिरिया तोरोॅ नु रे की।
जैसे चिहकै पिया मोर बिन मोरिनियाँ हो
वैसें हिचकै तिरिया तोरोॅ नु रे की।

अहो सामी जी, हमरोॅ गलतिया भूलि जाहो नु रे की।
अहो सामी जी, तोरोॅ सुरतिया जियरा बसै नु रे की।
अहो सामी जी, तोरोॅ मुरतिया निसि-दिन सेबौं नु रे की।
अहो सामी जी, बारी उमरिया मनमा सालै नु रे की।
अहो सामी जी, केकरा देखिये जियरा बोधबै रे की।
अहो सामी जी, तोरोॅ कहनमा नहिं राखलों रे की।
अहो सामी जी, वहीं रे करनमा फलवा भोगों नु रे की।
अहो सामी जी, हमरोॅ करमवां जरी गेलै नु रे की।
अहो सामी जी, ढर-ढर नयनमा लोरवा ढारै नु रे की।
अहो सामी जी, मन में धिरिजवा कैसे बांधवै रे की।

दिनमा नै चैन मिलै रतिया नै निनिया हो
सगठें बधरवा सून लागै नु रे की
तोड़लोॅ सनेहिया तों छोड़लोॅ गलबहियां हो
कहिया दरस सैयां भेतों नु रे की।

पिया तोरोॅ विरहवाने पोर छुवै छों।
पीरोॅ नयनमा सं लोर चुवै छों।

ठुनकै सेजरिया पे विरहिन पयलिय।
कुहकै बगनियां में निसदिन कोयलिया
रोज अधिरतिया के भोर हुवै छों।
पिया तोरोॅ विरहवाने...

एक-एक गहनमा ने छोड़कै बदनमा
हथवा से सरकलै देखोॅ गहनमा
मरनो बिना धानी तोर मुवैं छों।
पिया तोरोॅ विरहवाने...

बिन रे बदरवा के उमड़ै सगरवा
हहरैली नदिया ने तोड़कै कगरवा
उठलोॅ लहरवा के डोर सुबै छों।
पिया तोरोॅ विरहवाने...

बदरंग भेलोॅ फटी लूंगा पटोरवा
लाजें ठिठकों जों हेरै रे कौनो छोड़वा
रोबी के गीत चहुओर बुवै छो।
पिया तोरोॅ विरहवाने...

अभे रोॅ अंगनमा की लागै सोहनमा
गदरैलोॅ हुलसै की सांझ-विहनमा
नुनु ले अंचरवा के टोर रुवै छों।
पिया तोरोॅ विरहवाने...
संग में आकाश गंगा नाहे गेलोॅ छेलोॅ
हेरतें पानी चंपई भेल, तों बोललोॅ
-हिन्ने-हुन्ने हेरौ एक बिमल तरंगा
की सोहानोॅ लागै रानी ई आकाशगंगा?

सैयाँ, लाली बिना जेना सांझ वो बिहान
तोरोॅ स्नेह बिना तेना संगिया सयान।

सरंग-चँदनियाँ तर ठाढ़ी-ठाढ़ी कवरा
बटिया जोहै छै रोजे तोरी भौंरी भमरा
खन-खन खनकै जिया के कंगना।

तोरा यहाँ पानियें नै यहाँ गिरै हर-हर
तोरा यहाँ फूल फूलै मोरा यहाँ पतझर
देहिया छुवैले धावै पापी पवना।
दिन नहीं चैन मिलै रतियो नै निंदिया
लागै उदास यहो माथोॅ केरोॅ बिंदिया
पिया बिनु लागै सुनसान अंगना।

उठै नाची मन मोर सुधी के समइया
सिहरि-सिहरि उठै पैल्हें पुरबइया
लागै जेना जेवना जीमै रे सजना।

तोड़ै छोॅ सूरूज सभे प्रानियों के नीन
तों करंछोॅ तिमिर के अपना अधीन
अम्मा के गोदी में शिशु तोरा संग जागै
सगठें भुवन जागै अन्धकार भागै।
खेलै छोॅ तों हावा-पृथिवी में घुरि-घुरि
उतरै छोॅ गगन में सभे काम पूरि।

रने-बने घूरै छियों की तोरा सोहै छों
देश-विदेश के लोगे नै तोरा दूसै छो?

संसार के भला-बुरा सभे टा देखै छोॅ
संसार के गुण-अवगुण के लेख्ै छोॅ
तबे कैन्हें नी तिया के चीन्है तोरोॅ जिया
जंगल-जंगल भटकली रानी पिया!

कोकिला सुरोॅ में पिया तोरोॅ सुर पाबौं
कुमुदिनी-हास में तोरोॅ हँसी दिखाबौ
पाबौं पिया भमरा रुठान में रुठन
दखिन पवन के गमन में चुंवन!

गोर अंग सें गुलाब पंखुड़ी सटलोॅ
परख नै भेलों तोरा तों खुभे छकलोॅ
बाद छौं पिया तहाँ पहिलोॅ चुम्मा दान
पंखुड़ी मुहोॅ में ऐल्हों केलोॅ पहिचान।

हमें नै भूललों तोरा तों कैन्हें भूलै छोॅ
हमें नै तूलै छी पिया तों कैन्हें तूलै छोॅ
पिया-निवास जिया सुहागिन नारी के
कहोॅ नी देखइहों येहो हृदय फारी के।

उदयाचल शिखरे रोज मुसुकैल्हें
आवै छोॅ सरोजनी के चोली मसकैल्हें
रवि हे, तोरा परसे धरती-गगन
होवै जड़-चेतन के हृदय मगन।

तों जगाबै छोॅ सुबहे पंछी खोंता-खोंता
बया, फुरगुदी, घुग्घी, कौवा-मैना, तोता
बनमोर झाड़ी-झाड़ी तीतर-बटेर
छींटै छोॅ सगर लाल रंग लेलें ढेर
रंजित करै छोॅ वहे रंग सें उसर
जंगल-पहाड़, नदी, नगर-डगर।
सभेके सुरति करोॅ हमरा बिसरौ
कारण की? बोलोॅ कहै छी अरज करि।

येहो रजनी तड़पै आबी-आबी भीरी
सांझिये से खोजै पिया बारी-बारी दीरी।
पीरोॅ अंखिया में पिया पानी लबालब
तैयो छी पियासली पियास जैतै कब?

विरह-व्यथिता हमें पाबैले रोबै छी
रोय-रोय आसरा के गीत के बोवैछी।
लिलरा लगैबों मिलतें गोड़ के धूरा
आगिन बुझतै शीत जल पाबी पूरा।

कोय किरातिन गोड़ मेहदी लगाय
सेहो मेहदी हमरो अँखिया समाय।
रोभोॅ देखी हमरोॅ आँख लोर-सलोर
दुखिनी के देखि दुखी होथौं पोर-पोर।।

समरस होथौं दुख तिया के पिया के
परम अनन्त सुख मिलथौं हिया के।