भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

समय बचा लिया / वीरू सोनकर

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:28, 11 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरू सोनकर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सब कुछ मिट जाएगा इस बात को सच मान कर
देह के कुँए में साँसे खपा रहा हूँ
पैरो में दूरियाँ बाँध रहा हूँ
और खाल के भीतर जमा कर रहा हूँ आवाजे,

गले तक लील कर रोटी की खुशबू
चाहता हूँ नाभि में कहीं छुप-छुपा कर लिख दूँ
मेरा नाम क्या है और मैं कौन था!

सब कुछ मिट जाएगा,
जोड़ी गयी हर चीज बिखर जाएगी
मिटटी-हवा और पानी बन कर
एक पृथ्वी के चेहरे का तेज़ इससे और बढ़ेगा

धरती के उसी चमकते चेहरे पर रेंगेंगी कभी
भविष्य में कुछ बेचैन परछाइयाँ

ये साँसे तब उनके काम आएँगी
आवाजे तब चीख कर कहेंगी
तुम्हे कितनी दूरियां तय करना अभी भी बाकी है
रोटियां तब एक उपलब्धि नहीं रहेगी

नाभि पर नहीं,
वह किसी पहाड़ के चौड़े सीने पर लिखेंगे
वह सबसे जरुरी बात, जिसका बचना सबसे जरुरी था

वह लिखेंगे, सब कुछ मिट चुकने के बाद भी,
हमने तुम्हारा समय बचा लिया
हमने तुम्हारा नाम नहीं बचाया!