कि जैसे दुनिया देखने की
ज़िद के सही साँझ
न होने पर पूरा,
सो जाए मचल-मचल कर,
रोता हुआ बच्चा!
तो तैर आती हैं
उस के सपनों में,
वही चमकीली छवियाँ
जिन के लिए लड़ कर,
हार-थक गया था,
पत्थर-दुनिया से जाग में!
ऐसे उतर आती हो तुम
रात-रात भर
मेरे सपनों के भाग में!