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अचानक एक मोड़ पर / विजय कुमार सप्पत्ति
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अचानक एक मोड़ पर, अगर हम मिले तो,
क्या मैं, तुमसे; तुम्हारा हाल पूछ सकता हूँ;
तुम नाराज़ तो नही होंगी न?
अगर मैं तुम्हारे आँखों के ठहरे हुए पानी से
मेरा नाम पूछूँ; तो तुम नाराज़ तो नही होंगी न?
अगर मैं तुम्हारी बोलती हुई खामोशी से
मेरी दास्ताँ पूछूँ; तो तुम नाराज़ तो नही होंगी न?
अगर मैं तेरा हाथ थाम कर,तेरे लिए;
अपने खुदा से दुआ करूँ; तो तुम नाराज़ तो नही होंगी न?
अगर मैं तुम्हारे कंधो पर सर रखकर,
थोड़े देर रोना चाहूं; तो तुम नाराज़ तो नही होंगी न?
अगर मैं तुम्हे ये कहूँ,की मैं तुम्हे;
कभी भूल न पाया; तो तुम नाराज़ तो नही होंगी न?
अचानक एक मोड़ पर, अगर हम मिले तो,
क्या मैं, तुमसे; तुम्हारा हाल पूछ सकता हूँ;
तुम नाराज़ तो नही होंगी न?