भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सतरह / बिसुआ: फगुआ / सान्त्वना साह

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:33, 30 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सान्त्वना साह |अनुवादक= |संग्रह=ब...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चैत हे सखी बड़ी शुभ दिनमा, लाली लाली डोलिया फनाय हे
डगरिन जे उतरली, दसरथ ऐंगनमा, युग युग जीयेॅ चारो भाय हे।

बैसाख हे सखी नवमी इंजोरिया, बनली सुनयना आय माय हे
राजा जनक जी के, सोना रो हरवा, माटी सेॅ सोना उपजाय हे।

जेठ े सखी ऐलै बरसा हेठ हे, सुखलो धरतिया में प्राा हे
माटी केॅ जोती कोड़ी एकसर बनाबै, बिचड़ा बिराबै हर किसान हे।

अषाढ़ हे सखी डूब्बा रे पनिया, दुद्धा मकैइया डूबी जाय हे
दीरा चवनिया, केला बगनिया, टुटली मड़ैइया धँसी जाय हे।

सावन हे सखी रखिया बँधावै भैया, बहिना के नाचै मन मोर हे
जुग जुग जीयो भैया, बटिया बौरैहियो, दैछौं आशिषा बहिना तोर हे।

भादो हे सखी ऐलै कुदीनमा, कोसी बहैछै उमताय हे
भागलै जे खुट्टा तोड़ी, गैया बछोरिया, लिलिया कानै छै बुमुआय हे।

आसिन हे सखी पितर तरपन, जितिया खरो करै माय हे
सतमी लहाय खाय, अठमी उपासा, नवमी पारन करी खाय हे।

कातिक हे सखी घरे घर कुंडा, मुनिया मनावै सुकरात हे
भरी भरी कुढ़िया पुछिया, मुढ़ी धान लावा, खील खिलौा कमल पात हे।

अगहन हे सखी कटी गेलै धनमा, बोझो सेॅ भरलै खरिहान हे
धरती धरम अग्नि, देवता पितर पूजी, दुतिया पंचमी नेमान हे।

पूस हे सखी महुरैलो मनमा, गुड़ आदी चक्री के ठहार हे
नन्द ऐंगनमा, भदवारी दिनमा, जसुमती कनुवाँ के सम्हार हे।

माघ हे सखी रङ रङ रो फुलवा, बटिया निहारलेॅ मालिन जाय हे
रहिया बटोहिया, ठुठरैलो देहिया, गाँती पर टोपिया टिकाय हे।

फागुन हे सखी महुआ मदन रस, टप-टप चुवै भोरे भोर हे
डलिया जे भरी भरी, चुनै बहिनिय, बुलकी पाँजन करै शोर हे।