भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रायश्चित / जयप्रकाश मानस
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:21, 3 मार्च 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जयप्रकाश मानस |संग्रह=होना ही चाहिए आंगन / जयप्रकाश मा...)
मन को कोना-कोना
साफ़-सुथरा दीख रहा है
जैसे लिपा-पुता घर-आँगन
हलाक हुआ उतना अधिक
भर उठा है जितना
चमक रहा है एक बूँद सूरज कपोल पर
आँखों के रास्ते अड़ते-अड़ाते
उमड़ पड़ा है अथाह विश्वास
ख़ुद पर पहली बार