भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वनदेवता से पूछ लें / जयप्रकाश मानस

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:40, 3 मार्च 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जयप्रकाश मानस |संग्रह=होना ही चाहिए आंगन / जयप्रकाश मा...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घर लौटते थके माँदे पैरों पर डंक मार रहे हैं बिच्छू

कुछ डस लिए गये साँपों से

पिछले दरवाजे के पास चुपके से जा छुपा लकड़बग्घा

बाजों ने अपने डैने फड़फड़ाने शुरू कर दिए हैं

कोयल के सारे अंड़े कौओं के कब्जे में

कबूतर की हत्या की साज़िश रच रही है बिल्ली

आप में से जिस-किसी सज्ज्न को

मिल जाएँ वनदेवता तो

उनसे पूछना जरूर


कैसे रह लेते हैं इनके बीच