दखिने परुष्णी उत्तरे वितस्ता बहै
रचि-रचि मद्र के खिस्सा-कहानी कहै।
खेत-खेत पटै लोक-वेद पानी पिबै
संगें रहै साथें रहै ले सूतों से सिबै
सुन्दर दोआब भूमि लुभानॉ-सुहानोॅ
पुरुष सुरुज लागै नारी लागै चानोॅ
लागै की मुनर देश सांवरोॅ, सलोनोॅ
पौधा उगै ऋतु अनुकूल कोनोॅ-कोनोॅ
जौ गहुम धान उड़द मूंग मटर
चीना सामा खेढ़ी कोदो कुरथी रहर
बथुआ चौराय गेन्हारी गुम्मा-गिलोय
साग नोनिया तीनपतैया ठाढ़ी पोय
ऋतु संग फूलै पुरैन कुईं कल्हार
मौलसिरी माधवी कदम्ब कचनार
ऋतु संगे फरै खीरा खिरनी खजूर
आम जामुन तूत लताम भरपूर
महुआ मौसिमी अखरोट नरियर
तेन्दु केथ इमली अनार बड़हर
ऋतु संगे उगै शीशम चीर चिनार
शिरीष सागौन शाल सिहोरा गम्हार
बर पीपर पाकर परास सेमर
कहुआ तून अर्जुन बबूर गूलर
ऋतु संग उगै चनसूर पुंज-पुंज
आमला हरेॅ बहेड़ा हींग मद्र-कुंज
ऋतु संग उगै लौंग तगर कपूर
ऋतु संगें उगै जहां-तहां हुरहुर
दालचीनी जायफल जावित्री चन्दन
जटामांसी कुन्दरू गुगुल गोरोचन
ऋतु संग उगैसरपत मूंज-कास
आक धतूरा सम्हालू सहिजन बांस
अमरबेल सोमलता नील जवास
छुईमुई निमिया कपास दूब घास
सांझी-भिन्नी बांस-वन- मुच्-मुच् करै
छोटोॅ-छोटोॅ चिरैं सिनी कुच्-कुच् करै
मेघा झमझम झरै हेरि मोर नाचै
सुग्गा खोंढ़ा पढ़ै कभूं प्रेम-पांती बांचै
सालों भरी चहकी-चहकी मैनी गावै
कोइली कुहुकी कू-कू विरह जगावै
राती खुनी कुन्द दिन पोखरी पुरैन
चान सुरुजोॅ के नित हेरै खोलि नैन
लाल सेमर-ढाक लहकै लह-लह
अड़होल अशोक टहकै टह-टह।
बेली चम्पा चमेली महकै मह-मह
गेन्दा गुलाब गुच्छ गहकै गह गह
गोआ धमोय कुसुम पीरो धप-धप
महुआ कोंचाय नीचू करै चप-चप
अमन-चैन बिछलोॅ रहे मद्रराज
सभ्भें रङ् पुरलोॅ रहै सुखी समाज
सभ्भे नर-नारी रहै सयान शुभांग
कामरूप रतिरूप प्राण रयि रंग
देश लेॅ गौरव करै बुढ़वा-जवान
बड़ोॅ हुवेॅ याकि छोटोॅ सभ्भे पावै मान
घुली-मिी रहै सभे गरीब-अमीर
बाघ-बकरी ओ पिबै एक धार नीर
झगड़ा-झंझट न´् विवाद मतभेद
धरम-करम रहै पढ़ै लोग वेद
रोग-शोक व्याधि-विपत्ति सें रहै दूर
रहै स्वस्थ गांव-नगर-निगम-पुर
देश में संगीत विद्या के रहै प्रचार
आश्रमी शिक्षा में रहै आचार-विचार
मुख्य धंधा खेती रहे मद्र केॅ लोगों के
चीजोॅ के कमी न´् रहै विलास-भोगोॅ के
लोग बेसी गांव-कसवा में बसै रहै
देशे-देशे वणिक् व्यापार करै रहै
संसाधन पूरा रहै सुख वैभव के
राजमार्ग सौध खोलै रहै गौरव के
मद्र देश राजधानी में राजभवन
घिरलोॅ प्रकोष्ठ सें दुर्गो से दुर्गमन
बलिष्ट शल्य नरेश बैठी सिंहासन
शक्ति शौर्य भरलोॅ करै रहै शासन
जनता के रंजन लोक-कल्याण लेली
युद्ध प्रिय काम करै रहै मान लेली
सभासद मंत्री पंडित आरनी संग
शूरवीर सजलोॅ सेना के चारो अंग
एक दिन गंगानन्दन भीष्म चललै
मद्र नरेश शल्य के पुरी पहुंचलै
भीष्म के शुभगमन पर मद्रराज
नगर बाहरी ऐलै संग सैन्य साज
खुशी-खुशी श्रद्धा से करकै नमस्कार
राजभवन लै गेलै करने सत्कार
गदगद भेलै मने बड़ोॅ सुखमानी
अपने सें देलकै गोड़ धोवै ले पानी
बैठै लेॅ देलकै शल्यें सुन्दर आसन
अर्ध्य, मधुपर्क परोसकै दनादन
‘महामना, कैसें भेलोॅ आना’-पूछलकै
‘तोरी बहिन माद्री लेॅ’-भीष्में कहलकै
‘सुनै छी बड़ी सुशीला अपूर्व सुन्दरी
गुनगरी यशकरी बड़ी बुधगरी
माद्री के सुभाव के आभादीरी जरै छै
भीष्में पांडु ले कन्या के वरण करै छै
हम्में तोहें ठीक ठाक छी ई हुवे पारेॅ
दोन्हू बीच उचित सम्बन्ध जुड़ै पारेॅ
बैठते न´् योगायोग मद्रेश्वर काहीं
महाराज हमरा विधि सें अपनाहीं।’
भीष्म के विचार सुनी के शल्य बोलकै
शिष्ट ढंग सें मनोॅ के भाव खोललकै
आपने लोग सें वर श्रेष्ठ के मिलतों
मानै छी होलोॅ सम्बन्ध निश्चये खिलतोॅ
फनु एक बात कहौं, जे कुलोॅ के नेम
कन्या ले शुल्क लागै छै सश्रद्धा सप्रेम
आपने जानै छोॅ जानै छे सभ्भे ई बात
लांघै न´् सकौं नेम, जे कुल धर्म तात
कुल धर्म हमरा ले वहेॅ छै प्रमाण
यहेॅ छै कहै न´् सकौं होतों कन्यादान।’
हे राजा उत्तम धर्म विधि कहने छै
यैं में कोय दोष न´् पूर्वजें मानने छै
कुल के प्रतिष्ठा साधु पुरुष सम्मत
बड़ा अच्छा, यैं सें हम्में छियै अवगत।’
मंगैलकै ढेरे सामान शुल्क स्वरूप
मुहूर्त में खाड़ोॅ भै के भीष्म जनभूप
किसिम-किसिम के रत्न जवाहिरात
ढेरे हाथी घोड़ा रथ देलकै सौगात
देलकै रंग-विरंग वसन-वासन
मणि मोती मूंगा ढेरे सोना के आसन
सोना, सोनारोॅ बनलोॅ घुंघरू कंगना
बाजूबन्ध बिछिया सें भरकै अंगना
धन के झरी सें मद्र माटी पटी गेलै
हस्ति सम्पति सें मद्रपति खुश भेलै।
गमकौवा तेल मेलि केस झारि-झारि
जिरवा बान्हकै फूल खोंसि के कुमारि
पहिरकै झूमकौवा रेशमी पटोर
अंगिया में खिललै की अंग गोर-गोर
लाल चन्दन के बिन्दी टिकली लिलार
दोनों बांही जोशन गला सोने के हार
नाक में नथुनिया बेसर लाल ठोर
बिछिया अंगूठी अंगुली के पोरे-पोर
बांक बाजुबन्ध छन पहुंची कंगन
पातरी कमर करधन आभूषन
कड़ा-छड़ा गोड़ में पेन्हीं भेलै तैयार
यहेॅ रंगे कत्ते नी पेन्हिये अलंकार
सौंसे अंग अजबे दमकै दक-दक
सरंग-अप्सरा कोय हुवेॅ भरसक।
माद्री-चिकुरें मात सौंरी-सौंरी घटा के
वि फिक्कोॅ करै रहै शशि के छटा के
हंसी रहै कासिनी कासिनी भै चांदनी
छिटकी रहलोॅ छेलै भुवन मोहिनी
गोड़ लागलकै माद्री सुरुज चानोॅ के
धरती, पानी, आगी आकाश पौमानोॅ के
रावी, वितस्ता नदी के करकै नमन
रोतें-रोतें माय-भौजी सेॅ गल्लोॅ मिलन
खूभे कानलै भैया शल्य के गोड़ परी
मैयो के दुलार पैलकै ममता भरी
रूक्मांगद रक्मरथ के देतें सनेह
आसमान पिघललै बरसलै मेह
इन्द्र आदि देवें जिऐ ले लाख बरिस
नदिया दै नेह-छोह भरलोॅ आशिस
शीतला तेज दै चान सुरुज गोसांय
परिजन-पुरजन करकै विदाय।
मद्र नरेशें सोना नाकी माद्री बहिन
कुरूनन्दन भीष्म के सौंपकै सुदिन
कानतें-कानतें माद्री देवी विदा भेली
तखने लोगोॅ के आंखी भींगी-भींगी गेली
सखी-सहेलरी छुटलै भाय-भौजाय
लोग-लुगाय, काका-काकी, ममता माय
सुपती-मउनि खेल कनियां-पुतरी
छुटी गेल झुलुवा झुलवोॅ नुक्काचोरी
बाबू-भैया के पोखरी पौरबोॅ-हेलबोॅ
भैया-भौजी केरोॅ आगू रूसबोॅ-फुलबोॅ
छुटी गेल खेलल-कूदल हौ ऐंगन
घुरलोॅ-फिरलोॅ-फुदकलोॅ रे गगन
महल अटारी राजकुल मधुवन
फूल फर उगलोॅ आमोॅ के बिजुवन