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डैने / जयप्रकाश मानस
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आँधी-तूफ़ान उठा दूर कहीं
घिरी दिशाएँ
उखड़ने-उजड़ने के बावजूद
रह गया सिहरता एक पेड़
कुछ कहने को
कहने को बची रह गयी जो भयभीत चिडि़या
बचा भी क्या है उसके पास
प्रभाती कहने के सिवाय
गा चिड़िया
सबेरा जगा चिड़िया
सूरज उगा चिड़िया
चिड़िया
ओ चिड़िया
डैने फैला ओ चिड़िया