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हेमन्त / पतझड़ / श्रीउमेश
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सरद् ससोहागिन चल्ली गेली, एखनी होलै ओकरो अन्त।
मधुर-मधुर जाड़ा के लेलें आबी गेलै रितु-हेमन्त॥
घासोॅ पर के सीत लगै छै हीरा-पन्ना के अम्बार।
लागै छै चकमक-चकमक धरती पिन्हलेॅ छै गिरगल-हार॥
चुनचुन झां हमरै गाछी तर, बाँचै छेलै कथा-पुरान।
कत्तेॅ बेर यहाँ होलोॅ छै भक्ति भाब सें हरि के गान॥
रामचन्द्र के करुन कथा सें जनता छेलै भाव विभोर।
सुनी-सुनो केॅ óोेता के आँखी सें ढरकै छेलै लोर॥
लेकिन यै पतझड़ में सब छै मौन; कहाँ छै हरि-कीर्त्तन।
अर्चन-वन्दन-आत्म समर्पन-नमन कहाँ छै? छै क्रन्दन॥