दिनभर आज उपास रखी केॅ, सिव-पूजा होतै भरपूर। चारोपहर रात-भर होतै-पूजा, चढ़तै आँक धथूर॥ क्वारी लड़कीं पूजै छै, ई कही-कही केामल वानी। ”हमरा अच्छा बोॅर दिहोॅ हे सिवसंकर ओढर दानी॥ ढोल ढाक, तुतरु सें गम-गम करै रहै हमरोॅ अस्थान। पतझड़ के मनहूस दिनों में लागै छै सब कुछ बेजान॥