Last modified on 2 जुलाई 2016, at 03:14

सिवपूजा / पतझड़ / श्रीउमेश

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:14, 2 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीउमेश |अनुवादक= |संग्रह=पतझड़ /...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

दिनभर आज उपास रखी केॅ, सिव-पूजा होतै भरपूर।
चारोपहर रात-भर होतै-पूजा, चढ़तै आँक धथूर॥
क्वारी लड़कीं पूजै छै, ई कही-कही केामल वानी।
”हमरा अच्छा बोॅर दिहोॅ हे सिवसंकर ओढर दानी॥
ढोल ढाक, तुतरु सें गम-गम करै रहै हमरोॅ अस्थान।
पतझड़ के मनहूस दिनों में लागै छै सब कुछ बेजान॥