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वापसी / जयप्रकाश मानस
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पाँव में छाले घूमकर पथरीले रास्ते
गुम हो गयी इन घाटियों में कि सामने पहाड़
स्मृतियों के कोहरों में झाँक-झाँक जाते
पिछले ज़हरीले दिनों के कोलाज
कि युद्ध में लोहूलुहान घायल कोई अचेत सैनिक
उठ खड़ा क्षीण-छायावत
आज वे सभी थके हारे
लौटने के लिए इकट्ठे हैं इन वीरान घाटियों में
अपनी छोटी-सी दुनिया में लौट जाने के लिए
समूची दुनिया ग़ायब होने से पहले
बचा लेने के लिए
अब उनके पास कुछ भी शेष न रहने के बाद भी
एक चीज़ है और वह है लबालब
लौटने की मुस्कान, चमक आँखों में
कि सामने को ख़तरनाक पहाड़ भी सिजदे करे
इस ख़ुशी में बन्दगी में