समुद्र ने जो बुलाया
तो गये उसके पास
अभिराम देखते रहे उसे
जल ही जल
अपारावार जल
थककर उबने लगीं आँखें
ज़मीन के लिए मचलने लगीं
पहाड़ों ने बुलाया गये
पहाड़ दर पहाड़
गगनचुम्बी पहाड़ शृंखलाबद्ध
देखते-देखते ऊबने लगीं आँखें
उतरने को कहने लगीं नीचे
औरतों के हुजूम में
उन्हें देखती रहीं आँखें देर तक
औरतें-ही-औरतें दूर तक
आँखें थोड़ी ही देर में ढूँढ़ने लगीं
कोई मर्द चेहरा
और मर्दों के हुजूम में
थोड़ी ही देर में
औरतों को खोजने लगीं आँखें
इन आँखों की फ़िरत का क्या कहूँ
कि ऊब जाती हैं एकरस दृश्य से
कितना ही सुन्दर हो दृश्य
हर हमेशा चाहती है दृश्यान्तर
कि इन आँखों के परदों में आते-जाते रहें दृश्य
केवल समुद्र ही समुद्र
केवल पहाड़ ही पहाड़
केवल औरतें ही औरतें
केवल मर्द ही मर्द
केवल खजूर ही खजूर
केवल पीपल ही पीपल
कि विकल्पहीन हो जाए दृष्टि
कितने टोटे में है वह आँख
जो केवल एक-से ही दृश्य देखना चाहती है
दृश्यों से लबालब इस दुनिया में...