भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कैमरामैन देखो / हरीशचन्द्र पाण्डे

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:45, 5 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीशचन्द्र पाण्डे |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हवा चल रही है
पत्ते हिल रहे हैं

जिन पेड़ों पर पत्ते नहीं
उनमें बैठे कबूतर हिल रहे हैं

सूखी साड़ी की तरह हिल रही है
झील की ऊपरी सतह
बच्चों की नावें हिल रही हैं

कैमरामैन! देखो-देखो
एक ही फल पर दृष्टि गड़ाये
दो पक्षियों के सम्बन्ध हिल रहे हैं...