एक दिन बिलासपुर गांव में ज्ञान विज्ञान समिति के चर्चा मण्डल की बैठक होती है। उसमें चर्चा अमरीका की दादागीरी पर होती है। वहां बताते हैं कि अमरीका बनाम शेष विश्व का मामला है यह! अमरीका किसी भी कीमत पर इराक में सरकार परिवर्तन चाहता है। सन् 1991 से अन्तहीन युद्ध इराक के खिलाफ चलाया जा रहा है। उस युद्ध में अमरीका के लड़ाकू विमानों और मिसाइलों ने 1,10,000 हवाई उड़ानें भरी थी और 88,500 टन बम गिराये थे। उस युद्ध में 1,50,000 इराकी मारे गये थे। घर, अस्पताल, स्कूल कुछ भी नहीं बख्शा था। मामला अमरीका और इराक का नहीं है। मसला ये है कि पूरी दुनिया में अमन बराबरी और मानवता वादी मूल्यों को स्थापित करना है या अमरीका का गलबा कायम होना है। वापिस आते हुए सरतो अपने मन-मन में नफेसिंह को याद करती है और क्या सोचती है भला:
अमरीका मनै बतादे नै क्यों हुया इसा अन्याई तूं॥
इराक देश नै मिटाकै नै किसकी चाहवै भलाई तूं॥
खुद हथियार जखीरे लेरया ओरां पै रोक लगावै
दस साल तै पाबन्दी लाकै इराक नै भूखा मारना चाहवै
मतना इतने जुलम कमावै बणकै बकर कसाई तूं॥
जमीनी लड़ाई बिना तेरै इराक हाथ नहीं आणे का
इराक खतम करे बिना ना जमीनी कब्जा थ्याणे का
गाणा सही गाणे का क्यों दुश्मन बण्या जमाई तूं॥
खून मुंह कै लाग्या तेरै फिर अफगानिस्तान के मां
मानवता कती पढ़ण बिठादी तनै सारे जहान के मां
बची सै इन्सान के मां या खत्म करै अच्छाई तूं॥
सब देशां मैं नारे उठे जंग हमनै चाहिये ना
तेल की खातर ओ पापी लहू मानवता का बहाइये ना
आगै फौज बढ़ाइये ना बस करणी छोड़ बुराई तूं॥