भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सोते थे आण जागयो री / रणवीर सिंह दहिया

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:26, 5 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रणवीर सिंह दहिया |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

झलकारी बाई ने समाज की अवहेलना भी बहुत झेली थी। मगर उसने कभी हार नहीं मानी। यह अलग बात है कि उतार चढ़ाव उसके जीवन में भी आये। झांसी के आस-पास के देहात में जहां रानी लक्ष्मी बाई बहुुत लोक प्रिय थी वहीं झलकारी बाई को भी लोग एक कर्मठ व बहादुर महिला के रूप में जानने लगे थे। आपस में जहां भी कुछ महिलायें इकठ्ठी होती वहां झलकारी बाई के बारे में चर्चाएं बहुत होती थी। महिलाओं ने झलकारी बाई को लेकर बहुत से गीत भी बना लिये थे और बहुत से मौकों पर महिलाएं इकठ्ठी होकर गीत गाती भी थी। क्या बताया भलाः

सोते थे आण जागयो री, झलकारी बाई नै॥
सच्चाई को भूल रहे थे, फिरंगी झोली झूल रहे थे
हमे सही रास्ता दिखायो री, झलकारी बाई नै॥
लाई लूट खसोट की मण्डी, लूट रहे थे फिरंगी पाखण्डी
इनके सारे भेद बतायो री, झलकारी बाई नै॥
आपस मैं तकरार जात की, धर्म पै लड़ाई बिन बात की
हमे उजड़ण तै बचायो री, झलकारी बाई नैं॥
नारी का सत्कार नहीं था, पढ़ने का अधिकार नहीं था
बन्दूक चलाना सिखायो री, झलकारी बाई नैैै॥
दिल मैं विश्वास नहीं था, म्हारे अन्दर इकलास नहीं था
फिरंगी तै लड़वायो री, झलकारी बाई नै॥