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अघोरी का नाटक / चिन्तामणि जोशी

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हड्डी का टुकड़ा हाथ में लिये
तथाकथित अघोरी
भावनाओं में बह रहा था
और
नाटकीय अंदाज में
कह रहा था-
यह संसार एक रंगमंच है- बच्चा!
यह कोई सामान्य अस्थि नहीं
विगत दशक की
दुर्दान्त ‘ट्रेजेडी’ का अवशेष है
मैं साफ देख रहा हूँ -
इस अस्थि का अतीत
इसका धारक तो जैसे
गुणों की खान था
बाँका जवान था
सौम्यता का प्रतीक था
नीतिरत, निर्भीक था
उसने उच्च लक्ष्य निर्धारित कर
परोपकार का जामा पहना
लक्ष्य प्राप्ति हेतु -
वणिक का जामा पहन
धनवृद्धि की
गरीबों के मसीहा का
ढोंग रच कर
झोपड़ों में घुसा
फोड़े का दर्द
मवाद साफ कर
दूर करने का नाटक किया
और रक्त चूसा
भ्रष्टाचार के पर्वत से
टकराने का नाटक किया
पर्वत फटा
वह अन्दर धँसा
भ्रष्टाचारी शैल की
गर्म पर्तों के बीच
उसकी त्वचा झुलस गयी
मुँह काला हो गया
एक दिन
भ्रष्टता की गर्त में धँसा
उसका सिर
ऊपरी पर्त से
ऊपर उठा तो
भयंकर ‘ट्रेजेडी’ हुई
धर्म के ठेकेदारों ने उसे
शिवलिंग का संज्ञा दी
ढोंगियों का विरोधी
चिता में झोंक आया
तुम भी धोखा खा गये बच्चा!
इसे अधजली लकड़ी समझ कर
उठा लाये
खैर -
नाटक का शेषांश अभिनीत करो
ले जाओ इसे
चूल्हे पर धरो
कल इसकी राख को
मानव कल्याणार्थ आयोजित
यज्ञ की भस्म बताएंगे
जन सामान्य के माथे पर लगाएंगे
मोटी रकम कमाएंगे
कीमा-कलेजी-कबाब
सब आएगा -
आत्मा ही परमात्मा है बच्चा!
इम्पोर्टेड विदेशी शराब
हलक से नीचे उतरेगी
आह! मन बाग-बाग होगा
आत्मा तृप्त होगी हमारी
और उसे शान्ति मिलेगी।