भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लालसिंह ‘पहाड़’ है / चिन्तामणि जोशी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:04, 5 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चिन्तामणि जोशी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(आपदा 2013 की प्रथम बरसी पर)

आपदा पर
चल रही है राजनीति
लग रहे हैं
आरोप-प्रत्यारोप
बन रही है
योजना-परियोजना
गढ़ी जा रहीं हैं
कविताएं-कहानियाँ
छप रहे हैं
समाचार-विचार
लेकिन उसे
इन सबसे
अब नहीं है सरोकार
जानता है
उलझता नहीं कभी कालचक्र
निरर्थक बहस-मुबाहिसे में
फिर आयेगा आषाड़
फटेंगे बादल
भरभराएंगे पहाड़
उफान पर होगी नदी
तूफान पर छोटी गाड़
उसे पता है
हकीकत योजनाओं की
जो ठीक समय पर
सिद्ध होतीं हैं भोंथरी
और उसे चाहिये होती है
सिर छुपाने के लिए
एक अदद कोठरी
राजा भाग्यवान ठहरा
चुना उसने
फिर चुनेगा
चुनना पड़ेगा
भाग्यवान के लिए तो
खोदी हुई ही खाड़ है
कहता रहा है
कहता रहेगा
उस पर भरोसा झाड़ है

इसीलिए
पत्थर तोड़ रहा है
रोड़ी फोड़ रहा है
तख्ता-बल्ली जोड़ रहा है
कर रहा है
नमक-तेल का भी जुगाड़
दरक चुके घर के आजू-बाजू
तलाश कर
तराश रहा है सुरक्षित जमीन
तपा रहा है हाड़
दरकता है बार-बार
फिर भी खड़ा है
पुरुषार्थ उसकी आड़ है
लालसिंह ‘पहाड़’ है।