भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अप्प दीपो भव / यशोधरा 3 / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:54, 5 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=अ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
पूरा दिन खाली-सा
बीत गया आँखों-ही-आँखों में
चिंतित है यशोधरा
कोई संदेश नहीं
पिता-पुत्र दोनों का
सूख गया जल
उसकी आँखों के कोनों का
कबकी है
दिये जला गई चेरि ताखों में
चिंतित है यशोधरा
एक रात पहले की
एक रात आज की
हो गई कपोती वह -
चोंच फँसी बाज की
घटाटोप गहरा
सन्नाटा है बरगद की शाखों में
चिंतित है यशोधरा
रात-ढले कल
अगला सूरज जब आयेगा
जाने क्या समाचार
सँग अपने लायेगा
बिंधी रहेगी
तब तक वह जली सलाखों में
चिंतित है यशोधरा