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अप्प दीपो भव / अंगुलिमाल 2 / कुमार रवींद्र
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प्रश्न एक -
क्या है दुख
अंगुलिमाल सोच रहा
यही एक जिज्ञासा
शेष रही
आँखों से उसके
जलधार बही
हो गया
निरर्थक सब
किसने क्या उसे कहा
शास्ता से
बोध मिला एक नया
'धम्म' एक है केवल
जीवदया
भीतर जो
था उसके
निर्मम एकांतों का किला ढहा
पाप-पुण्य
शब्द हुए अर्थहीन
अहंकार मिटा सभी
हुआ दीन
एक महासागर है
करुणा का
साँसों में वही बहा