भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अप्प दीपो भव / आनंद 2 / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:35, 5 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=अ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

'बुद्ध हुआ जो
वह भी अमर नहीं होता है

'सूर्य सुबह उगता है
ढलता है साँझ हुए
झरते हैं पत्ते
फिर उग आते हैं अँखुए

'पुत्र फसल काट रहा -
          पिता उसे बोता है

'क्रिया यहीं है, भन्ते
जीने की-मरने की
दिया बुझा -नया जला
चौखट पर धरने की

'प्राण...
सदा उड़ता जो रहता
                वह तोता है

'देह-पार भी तो हैं
संज्ञाएँ सूरज की
जन्म-मृत्यु दोनों हैं
घटनाएँ अचरज की

'सोचो, आनन्द
      कहाँ अमृत का सोता है'