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अप्प दीपो भव / उपसंहार 1 / कुमार रवींद्र

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बोधिवृक्ष फला-फूला
शाखाएँ फ़ैल गईं
            दूर-दूर तक इधर-उधर


महलों के गुम्बद से
परजा के आँगन तक
करुना के मंत्र पले
सबके मन में अनथक

पशु-पक्षी अभय हुए
     पिंजरों से मुक्त हुए
               बसे रहे वन-कोटर

हिंसक अँधियारों की
रात कटी - धूप भरी
सदियों तक कोंपल भी
फिर अकाल नहीं झरी

महिमा थी बुद्ध की
       गाँव-नगर
भरे रहे बरखा जल से पोखर

घटना इतिहास की -
जागा सम्राट एक
और फिर अशोक हुआ
मोह कटा -
बुद्धों की करुणा ने उसे छुआ

सिन्धु-पार
  दूर-दूर देशों तक
झरा नेह का निर्झर

यादों में आज भी
कथानक वह मरा नहीं
बोधिवृक्ष जो भीतर फूला था
वह अब तक झरा नहीं

जब तक है साँसों में
  यह फुहार करुणा की
भन्ते, यह कथा अमर