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प्राणमती की आशंका / प्रेम प्रगास / धरनीदास

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चौपाई:-

प्राणमती चित गुनत घनेरी। विपरित वात कहत है चेरी॥
भौ कोइ शंका पिउ समाना। तो कछु चाटक नाटक जाना॥
कै वड सिद्ध योगीश्वर आही। तपके तेज अगिन वर ताही॥
कै कोइ पास रहै मनियारा। जो मुख भीतर कर उंजियारा॥
कै सुर अशुभ भेष धरि आऊ। राजकुँअरकर यह न सुभाऊ॥

विश्राम:-

चारि पहर शोचत गये, पलक न जो रचो नैन॥
युग सम यामिनि कामिनि नहिं, साँकि साथी रहि शैन॥157॥

चौपाई:-

भौ प्रभात मैना चलि आऊ। देख कुँअरि अरि विपरीत सुभाऊ॥
कह मैना सुनु राजकुमारी। आजुन रूप काल अनुहारी॥
वदन मलीन मंद व्यवहारा। जनु विषधर विष चढयो कपारा॥
प्राणमती उठि संभारी। धोय चरन विधु वदन परवारी॥
हित मैना पुनि निकट बुलाई। पूछयो बहु विधि शपथ दिवाई॥

विश्राम:-

कहु मैना घौं मोहि सन, सिद्ध केर व्यवहार।
हितसो हाथ पटायऊ, निशि भोजन भर थार॥158॥

चौपाई:-

सत्य सत्य कहु मोसन भाऊ। किमि कारन मुरछा सखि आऊ॥
कह मैना सुनु दुहिता राऊ। सखि मुरछा कर कहों सुभाऊ॥
कुंअर निकट हवै सखी जुहारा। प्रगट दशन ध्युति भौं उंजियारा॥
तेहि उंजियार कुंअर छवि हेरी। भौ पतंग तेहि दीपक चेरी॥

विश्राम:-

मनमोहन मुख देखते, सखी न सुरति संभार।
कुंअर दशन ध्युति दामिनी, कामिनि दामिनि मार॥159॥