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विनय / शब्द प्रकाश / धरनीदास
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धरनी जनकी वीनती, करु करुणामय कान।
दीजै दर्शन आपनो, माँगो कछू न आन॥1॥
धरनी शरनी रामकी, जीव पवन मन प्रान।
मनसा वाचा कर्मना, घरों न दूजो ध्यान॥2॥
धरनी शरनी रावरी, राम गरीब नेवाज।
कौन करैगो दूसरो, मोहिँ गरीब को काज॥3॥
बात 2 संसार में, धरनी लागत चोट।
अब पकरी परतच्छ होइ, रामनामकी ओट॥4॥
तिनुका दन्तके अन्तरे, कर जोरे भुंइ शीश।
धरनी जन विनती करै, जान पीर जगदीश॥5॥
धरनी नहिँ वैराग बल, नहीं योग सन्यास।
मनसा वाचा कर्मना, विश्वम्भर विश्वास॥6॥
विनती लीजै मानकरि, जानि दासको दास।
धरनी शरनी राखिये, अब न दूसरी आस॥7॥