पानि ते पिंड बनाइ दियो, जिह मास दृगा प्रतिपासि पटा।
निकरे भौ मा तु पिता सुत नारि, गृही जगराज तुरंग छटा॥
चेतु अचेत कहाँते भवो, फिररि जैहो कहाँ परि है झपटा।
ध्यान धरो धरनीश्वर को, दिन जात चला चलनी सो अटा॥6॥
पानि ते पिंड बनाइ दियो, जिह मास दृगा प्रतिपासि पटा।
निकरे भौ मा तु पिता सुत नारि, गृही जगराज तुरंग छटा॥
चेतु अचेत कहाँते भवो, फिररि जैहो कहाँ परि है झपटा।
ध्यान धरो धरनीश्वर को, दिन जात चला चलनी सो अटा॥6॥