Last modified on 21 जुलाई 2016, at 09:23

प्रियतम विछोह / शब्द प्रकाश / धरनीदास

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:23, 21 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धरनीदास |अनुवादक= |संग्रह=शब्द प्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जग जन्म भयो सँगही सँग औ, सँगही रस खेल केतो करिये।
सँग ही सँग गौधन छोड़ि चले, सँग ही वन काहुन ते डरिये॥
सँगही यमुना-जल केलिकियो, सँगही सुख सोइ निशा भरिये।
अब ऐसे भये सपनेहु नहीं, धरनी मन धीरज क्यों धरिये॥7॥