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अध्यात्म प्रयाग महातम / शब्द प्रकाश / धरनीदास
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तीरथराज के पंथ चले, जन योजन 2 यज्ञ करै।
यमुना जल गंग-सरस्वति-संगम, प्रेमके पिंडते पित्र तरै॥
माधव को मुख देखत ही, दुख दूरि दुरै सुख पूर भरै।
धरनी धनि ते धरती में गुनी, तन-मांह तिवेनि पतीति करै॥8॥