भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सलाम अलौक / शब्द प्रकाश / धरनीदास

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:39, 21 जुलाई 2016 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आदि जो एक सो अन्तहुँ एक जपो कलिमाँ तिन एक गहो।
हिन्दु मलेछ वलेछ नहीं, कछु दोपट जो पलरायट हो॥
धर्म इमान जमात सबै, गुरु पीर पुकारि 2 रहो।
धरनी सबको समुझाइ कहै, भ! क्यों न ”सलाम-अलैक“ कहो॥12॥