भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सपूत / शब्द प्रकाश / धरनीदास
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:00, 21 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धरनीदास |अनुवादक= |संग्रह=शब्द प्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
साँच लिये सतसंग किये, जो हिये हरिनाम निरन्तर लेते।
पाँचहुको परपंच गवो पचि, या मनको ममता नहि देते॥
धरनी कह राम प्रताप दशो दिशि, अस्तुति भाव कहरैं जन जेते।
काह कपूत बहूत भये होइ, एक सपूत तरे कुलकेते॥17॥